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आखिर डिमर्जर क्या होता है?
डिमर्जर तब होता है जब कोई कंपनी अपने एक हिस्से को अलग कर नई कंपनी बना देती है। इसे ऐसे सोचो जैसे सड़क दो भागों में बंट जाए — एक रास्ता अब दो या ज्यादा नए रास्तों में बंटकर अपने-अपने मकसद पूरे करता है।
शेयरधारकों के लिए, डिमर्जर का मतलब है कि पैरेंट कंपनी के शेयर रखने के साथ-साथ उन्हें नई बनी कंपनी के भी शेयर मिलेंगे।
डिमर्जर के प्रकार
सभी डिमर्जर एक जैसे नहीं होते। मुख्य रूप से ये तीन बड़े प्रकार के होते हैं, साथ में कुछ खास केस भी होते हैं।
स्पिन-ऑफ (शुद्ध डिमर्जर)
इसमें कंपनी का एक हिस्सा अलग होकर नई, स्वतंत्र और सूचीबद्ध कंपनी बन जाता है। पैरेंट कंपनी के शेयरधारकों को नई कंपनी के भी शेयर मिलते हैं।
* उदाहरण (भारत): 2007–08 में बजाज ऑटो तीन कंपनियों में बंटा — बजाज ऑटो (मोटरसाइकिल), बजाज फिनसर्व (वित्तीय सेवाएं), और बजाज होल्डिंग्स (निवेश)।
* उदाहरण (दुनिया): ईबे ने 2015 में पेपाल को अलग कर दिया।
इक्विटी कार्व-आउट
इसमें पैरेंट अपनी सहायक कंपनी का कुछ हिस्सा (आमतौर पर 10–30%) आईपीओ के ज़रिए बेच देता है। इससे पैरेंट को पैसा मिल जाता है और फिर भी नियंत्रण उसके पास रहता है।
* उदाहरण (भारत): एचडीएफसी ने एलआईसी हाउसिंग फाइनेंस को अलग किया, जो बाद में बड़ी सूचीबद्ध कंपनी बनी।
* उदाहरण (दुनिया): जनरल मोटर्स ने अपनी वित्तीय इकाई जीएमएसी (अब एली फाइनेंशियल) को अलग किया।
स्प्लिट-अप
इसमें पैरेंट कंपनी पूरी तरह बंद हो जाती है और उसकी जगह दो या ज्यादा नई स्वतंत्र कंपनियां बन जाती हैं।
* उदाहरण (भारत): 2005 में रिलायंस इंडस्ट्रीज, जहां अंबानी परिवार के समझौते से समूह मुकेश अंबानी (रिलायंस इंडस्ट्रीज) और अनिल अंबानी (रिलायंस एडीएजी) में बंटा।
* उदाहरण (दुनिया): 1984 में एटी एंड टी को कई “बेबी बेल्स” में तोड़ा गया ताकि एकाधिकार घटे।
खास मामले
कुछ विशेष मामले भी हैं:
* स्पिन-ऑफ + रणनीतिक बिक्री: जैसे आदित्य बिड़ला नुवो ने अपना टेलीकॉम हिस्सा आइडिया में अलग किया, जो बाद में वोडाफोन से मिल गया।
* नियामकीय मजबूरी: जैसे आईडीएफसी को बैंकिंग और एसेट मैनेजमेंट कारोबार अलग करने पड़े।
कब कौन सा तरीका अपनाया जाता है?
हर स्थिति में अलग तरीका सही बैठता है:
* स्पिन-ऑफ तब जब दोनों बिज़नेस अपने दम पर अच्छा कर सकते हों।
* कार्व-आउट तब जब पैरेंट को पूंजी चाहिए लेकिन नियंत्रण रखना चाहता हो।
* स्प्लिट-अप तब जब बिज़नेस में तालमेल न हो या नियामक/परिवारिक समझौता मजबूर करे।
* स्पिन-ऑफ + बिक्री तब जब पहले स्वतंत्र बनाना ज़रूरी हो और बाद में विलय करना हो।
डिमर्जर क्यों होते हैं?
कंपनियां मज़े के लिए नहीं बंटतीं — इसके पीछे बड़े कारण होते हैं:
* पैरेंट का मूल्य खोलना: कमजोर हिस्सा पूरी कंपनी की वैल्यू कम कर सकता है। उसे अलग करने से असली ताकत दिखती है।
* सहायक का मूल्य खोलना: कभी-कभी यूनिट खुद तेजी से बढ़ सकती है, जैसे ईबे और पेपाल।
* मैनेजमेंट फोकस: कई अलग-अलग कारोबार चलाने से ध्यान बंटता है। अलग कंपनियां बनने से मैनेजमेंट अपने मुख्य कारोबार पर फोकस कर पाता है।
* नियम कारण: जैसे फाइनेंस सेक्टर में बैंक, इंश्योरेंस और म्यूचुअल फंड को अलग-अलग कंपनियों में रखना पड़ता है।
डिमर्जर में शेयरों का क्या होता है?
प्रक्रिया आसान होती है:
* पैरेंट कंपनी के मौजूदा शेयरधारकों को नई कंपनी के शेयर एक तय अनुपात में मिलते हैं (जैसे 1:1)।
* डिमर्जर के बाद दोनों कंपनियां अलग-अलग स्टॉक एक्सचेंज पर ट्रेड होती हैं।
* निवेशक चाहें तो दोनों रखें या एक बेच दें।
उदाहरण: एचयूएल के केस में, शेयरधारकों को हर एक शेयर पर क्वालिटी वॉल्स (इंडिया) लिमिटेड का एक शेयर मिलेगा। बाद में एचयूएल और केडब्ल्यूआईएल दोनों अलग-अलग ट्रेड होंगे।
केस स्टडी: एचयूएल और क्वालिटी वॉल्स
डिमर्जर क्यों?
एचयूएल अपनी आइस-क्रीम कंपनी क्वालिटी वॉल्स को अलग कर रहा है। मैनेजमेंट का मानना है कि यह डिवीजन बड़ी एफएमसीजी कंपनी के अंदर कमजोर साबित हो रहा है। अलग होने से इसे ज्यादा फोकस और आज़ादी मिलेगी और एचयूएल का कुल नतीजा बेहतर दिखेगा।
मुख्य चुनौतियां:
* आइसक्रीम में संघर्ष: अमूल, नेचुरल्स और बास्किन-रॉबिन्स जैसे प्रतिद्वंद्वियों से पिछड़ना।
* कस्टमर ट्रेंड मिस: लोग प्रीमियम और नेचुरल आइसक्रीम पसंद करने लगे, लेकिन एचयूएल ने वेजिटेबल फैट वाली डेसर्ट्स पर जोर दिया।
* कोल्ड चेन दिक्कत: आइसक्रीम को हर कदम पर ठंडा रखना जरूरी है, जो साबुन-शैम्पू से कठिन है। अमूल जैसे प्रतियोगी इसे बेहतर संभालते हैं।
* डिजिटल देरी: नए ब्रांड जैसे गो ज़ीरो और माइनस 30 ऑनलाइन और स्विगी-फर्स्ट स्ट्रैटेजी अपनाकर आगे निकल गए।
संरचना कैसी होगी
- नई कंपनी: आइसक्रीम कारोबार अलग होकर क्वालिटी वॉल्स (इंडिया) लिमिटेड बनेगा।
- शेयर अधिकार: एचयूएल के हर शेयर पर एक शेयर केडब्ल्यूआईएल का मिलेगा।
- समयसीमा: 2026 के अंत तक डिमर्जर पूरा होगा।
- वैश्विक तालमेल: यूनिलीवर ग्लोबली भी अपनी आइसक्रीम यूनिट अलग कर रहा है — द मैग्नम आइसक्रीम कंपनी (टीएमआईसीसी)।
आगे क्या?
बाजार में चर्चा है कि एचयूएल क्वालिटी वॉल्स को आगे बेच सकता है। संभावित खरीदारों में आरजे कॉर्प और एमएमजी समूह हैं। अगर न भी बेचा जाए, तो केडब्ल्यूआईएल को अब स्वतंत्र पहचान और मैनेजमेंट फोकस मिलेगा।
अंतिम निष्कर्ष
डिमर्जर बताते हैं कि बड़ा होना हमेशा बेहतर नहीं होता। कभी-कभी छोटी, तेज धाराएं बनाना ही समझदारी है।
निवेशकों के लिए, डिमर्जर मौके लाते हैं:
* कुछ लोग एचयूएल की स्थिर कमाई पसंद करेंगे।
* कुछ लोग क्वालिटी वॉल्स पर दांव लगाना चाहेंगे।
किसी भी तरह, अलगाव हो रहा है। बड़ा सवाल यह है: क्या केडब्ल्यूआईएल अमूल और नेचुरल्स को टक्कर दे पाएगा? समय बताएगा।