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टैरिफ असल में होते क्या हैं?
चलो शुरुआत करते हैं बेसिक्स से।
टैरिफ एक टैक्स होता है जो सरकार इंपोर्ट्स यानी बाहर से आने वाले सामान पर लगाती है। इसे आप बॉर्डर पर टोल गेट जैसा समझो — जब कोई विदेशी सामान देश में आता है, तो सरकार उस पर फीस लेती है। इससे वो इंपोर्टेड सामान देश के लोगों के लिए महंगा हो जाता है। इससे देशी सामान को प्राइस में फायदा मिलता है और घरेलू इंडस्ट्री को विदेशी मुकाबले से बचाने में मदद मिलती है।
कभी-कभी टैरिफ एक्सपोर्ट्स यानी बाहर भेजे जाने वाले सामान पर भी लग सकता है, लेकिन ये कम होता है।
देश टैरिफ क्यों लगाते हैं?
सरकारें टैरिफ कई वजहों से लगाती हैं — कुछ रणनीतिक, कुछ राजनीतिक और कभी-कभी सिर्फ घरेलू इंडस्ट्री को बचाने के लिए।
1. घरेलू इंडस्ट्री की सुरक्षा
अगर देश के मैन्युफैक्चरर्स को बाहर से आने वाले सस्ते सामान से नुकसान हो रहा हो, तो सरकार टैरिफ लगाकर इंपोर्ट को महंगा बना सकती है ताकि देशी प्रोड्यूसर्स को बराबरी का मौका मिले।
2. सरकारी आमदनी बढ़ाना
पहले के ज़माने में टैरिफ सरकार की कमाई का बड़ा ज़रिया था। आज ये ज़्यादा नीति से जुड़ा होता है, लेकिन कुछ विकासशील देशों में अभी भी ये बड़ा रेवेन्यू सोर्स है।
3. राजनीतिक दबाव बनाना
कई बार टैरिफ को इकोनॉमिक डिप्लोमेसी या बदले के हथियार की तरह इस्तेमाल किया जाता है। एक देश टैरिफ लगाए, तो दूसरा जवाब में वही करे — और धीरे-धीरे ट्रेड वॉर शुरू हो सकती है।
4. राष्ट्रीय सुरक्षा
कुछ सेक्टर जैसे डिफेंस, चिप्स या एनर्जी को रणनीतिक रूप से ज़रूरी माना जाता है। इन पर टैरिफ लगाकर दूसरे देशों पर निर्भरता कम की जाती है।
5. व्यापार असंतुलन को ठीक करना
अगर कोई देश बहुत ज़्यादा इंपोर्ट करता है और कम एक्सपोर्ट (जैसे अमेरिका कई देशों से करता है), तो टैरिफ से इस असंतुलन को थोड़ा कम किया जा सकता है।
टैरिफ के प्रकार
टैरिफ सिर्फ एक ही तरह के नहीं होते। कुछ मुख्य प्रकार:
- Ad Valorem Tariff: इंपोर्ट किए गए सामान की कीमत का प्रतिशत (जैसे इनवॉइस का 25%)
- Specific Tariff: हर यूनिट पर फिक्स फीस (जैसे ₹50 प्रति किलो)
- Compound Tariff: दोनों का कॉम्बिनेशन
इसके अलावा Anti-Dumping Duties भी होते हैं — जब कोई देश बहुत सस्ते दाम पर माल बेचकर मार्केट को भर देता है, तो उस पर ये स्पेशल टैरिफ लगाया जाता है।
टैरिफ का उल्टा असर
टैरिफ घरेलू प्रोड्यूसर्स को तो बचाते हैं, लेकिन उपभोक्ताओं (consumers) को नुकसान होता है क्योंकि सामान महंगा हो जाता है।
ये उल्टा भी पड़ सकता है। अगर देश A देश B पर टैरिफ लगाता है, तो B भी जवाब में टैरिफ लगाएगा — और बात बढ़कर एक बड़ी ट्रेड वॉर बन सकती है, जैसा हमने 2018–2019 में अमेरिका और चीन के बीच देखा।
वो इंडस्ट्रीज जो कच्चा माल बाहर से मंगाती हैं (जैसे इलेक्ट्रॉनिक कंपनियां जो चिप्स इंपोर्ट करती हैं) — उनके लिए इनपुट कॉस्ट बढ़ जाता है और उन्हें नुकसान होता है।
भारत-अमेरिका टैरिफ विवाद
अब जब हमने कॉन्सेप्ट समझ लिया है, तो हाल की खबर को थोड़ा करीब से देखें।
जुलाई 2025 में, अमेरिका ने भारत के कई सामानों पर एकसाथ 25% टैरिफ लगा दिया, जैसे स्टील, इंजीनियरिंग सामान और स्पेशलिटी केमिकल्स। जैसा ऊपर बताया गया, ये एक तरह का Ad Valorem Tariff है — यानी प्रोडक्ट की कीमत का कुछ प्रतिशत।
ये कदम अमेरिका ने इसलिए उठाया ताकि वो अपने मैन्युफैक्चरर्स को “अनुचित व्यापार प्रथाओं” से बचा सके। और भी देशों पर ये टैरिफ लगाया गया है — खासकर जो सस्ता सामान एक्सपोर्ट करते हैं।
भारत को इस टैरिफ से ज्यादा झटका इसलिए लगा क्योंकि:
- कई भारतीय इंडस्ट्रीज़ अमेरिका की डिमांड पर निर्भर हैं
- चीन, वियतनाम और मेक्सिको से पहले ही भारी कॉम्पिटिशन है
- 25% ड्यूटी से भारत की प्राइसिंग एडवांटेज खत्म हो जाती है
ये ऐसे समय पर हुआ जब भारत “मेक इन इंडिया” और “आत्मनिर्भर भारत” के ज़रिए एक्सपोर्ट बढ़ाने की कोशिश कर रहा था।
भारत-अमेरिका टैरिफ टकराव: एक छोटा इतिहास
भारत और अमेरिका में व्यापार को लेकर पहले भी खींचतान हुई है:
- 2018 में अमेरिका ने भारतीय स्टील और एल्युमिनियम पर टैरिफ लगाया — सुरक्षा का हवाला देते हुए
- भारत ने बदले में अमेरिकी बादाम, सेब और अखरोट पर टैरिफ लगाया
- 2019 में अमेरिका ने भारत को GSP (Generalized System of Preferences) लिस्ट से हटा दिया, जिससे भारत को अमेरिका में बिना टैरिफ के एक्सेस मिलता था
- डिफेंस जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ा है, लेकिन व्यापार बातचीत में अब भी दिक्कतें हैं
अब आगे क्या?
भारत WTO में शिकायत दर्ज कर सकता है और जवाब में टैट-फॉर-टैट टैरिफ्स (जैसे को तैसा) का विचार कर सकता है। लेकिन इसका रिस्क भी है — क्योंकि अमेरिका के साथ भारत का व्यापार बहुत अहम है। भारतीय एक्सपोर्टर्स को या तो टैरिफ का झटका खुद झेलना होगा (मतलब मुनाफा घटेगा), या इसे अमेरिकी ग्राहकों पर डालना होगा, जिससे डिमांड गिर सकती है।
कुछ सेक्टर जैसे स्पेशल स्टील या फार्मा इंटरमीडिएट्स शायद एक्सपोर्ट को किसी और देश से री-रूट करने की कोशिश करें, लेकिन ये हमेशा आसान नहीं होता।
आखिरी बातें
क्या टैरिफ बुरे हैं? ज़रूरी नहीं। अगर सही तरीके से इस्तेमाल किए जाएं, तो ये कमज़ोर इंडस्ट्री को बचा सकते हैं, बेहतर व्यापार शर्तों के लिए बातचीत कर सकते हैं और राष्ट्रीय सुरक्षा को भी मजबूत कर सकते हैं। लेकिन इसके लिए एक ठोस रणनीति होनी चाहिए। अगर बिना सोचे-समझे टैरिफ लगा दिए जाएं, तो इससे कन्फ्यूजन, महंगाई और देशों के बीच रिश्तों में तनाव आ सकता है।
आज के ग्लोबल दौर में, कोई भी देश अकेला नहीं है — सप्लाई चेन सरहदों के पार फैली होती हैं और ट्रेड रुकावटों का असर पूरी दुनिया में पड़ता है। आपको एक्सपोर्टर या पॉलिसी मेकर होने की ज़रूरत नहीं है — टैरिफ का असर पड़ता है:
- दुकानों में मिलने वाले सामान की कीमतों पर
- मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में मिलने वाली नौकरियों पर
- देशों के बीच होने वाली डिप्लोमेसी की दिशा पर
अमेरिका का ये लेटेस्ट टैरिफ कदम याद दिलाता है कि ग्लोबल ट्रेड सिर्फ इकोनॉमिक्स नहीं — राजनीति और पब्लिक स्टेटमेंट्स का भी खेल है। और भले ही खबरें कुछ समय बाद गायब हो जाएं, लेकिन इसका असर बिज़नेस, प्राइसिंग और इंटरनेशनल रिश्तों पर लंबे समय तक रहता है।